शक्ति और क्षमा
रामधारी सिंह “दिनकर”
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनीत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
shabd shabd sach!!
Here is a poem by Shri. Ramdharhari Singh Dinkar that I studied in the school and liked, but forgot long ago. Happened to land on it today. The other poems I have liked are Bachpan by Subhadrakumari Chauhan and Pushp ki Abhilasha by Makhan Lal Chaturvedi
|| अनुपम || मैंने बचपन में यह कविता पड़ी थी और यह मेरे जीवन की पड़ी हुई सबसे सुन्दर कविता है |
और मेरी सबसे पसंदीदा पंक्तियाँ निम्नलिखित है -:
“तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से । “
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।
“सत्य वचन ,जिसके पास शक्ति ही नहीं है , वो क्या दंभ भरे पौरुष का, और जो शक्तिवान है केवल वोही क्षमा करने का सामर्थ्य रखता है. कितनी सुन्दर पंक्तिया हैं…”
iss kavita ka hindi mens samjha do
dinkar ji ne shati our chama ka prichya kraya hai jo antim sach hai as chama
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।
sundar sarl sargrbhit panktiyo me dinkar ji ne chham our shakti ka bakhan kar diya
pasndida kavita hai.