85. राग धनाश्री
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मेरो मन रामहि राम रटै रे।
राम नाम जप लीजे प्राणी, कोटिक पाप कटै रे।
जनम जनमके खत जु पुराने, नामहि लेत फटै रे।।
कनक कटोरे इम्रत भरियो, पीवत कौन नटै रे।
मीरा कहे प्रभु हरि अबिनासी, तन मन ताहि पटै रे।।1।।
शब्दार्थ /अर्थ :- खत = कर्ज के कागज, यहां आशय है पाप-कर्म का लेखा।
फटै = चुक जाते हैं। नटै =इन्कार करता है। पटै = मिल जाते हैं।
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