7. राग प्रभाती
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राम मिलण रो घणो उमावो, नित उठ जोऊं बाटड़ियाँ।
दरस बिना मोहि कछु न सुहावै, जक न पड़त है आँखड़ियाँ।।
तड़फत तड़फत बहु दिन बीते, पड़ी बिरह की फांसड़ियाँ।
अब तो बेग दया कर प्यारा, मैं छूं थारी दासड़ियाँ।।
नैण दुखी दरसणकूं तरसैं, नाभि न बैठें सांसड़ियाँ।
रात-दिवस हिय आरत मेरो, कब हरि राखै पासड़ियाँ।।
लगी लगन छूटणकी नाहीं, अब क्यूं कीजै आँटड़ियाँ।
मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, पूरो मनकी आसड़ियाँ।।7।।
शब्दार्थ /अर्थ :- घणी =घनी, बहुत अधिक। उमाव = उमंग। बाटड़ियाँ = बाट, राह।
जक =चैन। फाँसड़ियाँ = फांसी। साँसड़ियाँ =सांसें। पासड़ियाँ =समीप।
आँटड़ियाँ =आपत्ति, बाधा। आसड़ियाँ = आशाएँ।
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