28. राग पीलू
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करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी।।
दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी।
तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी।। कुंज बन हेरी-हेरी।।
अंग भभूत गले मृगछाला, यो तप भसम करूं री।
अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री।। रोऊं नित टेरी-टेरी।।
जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी।
रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी।। रहूं चरननि तर चेरी।।28।।
शब्दार्थ /अर्थ :- बावरी =पगली। सुणी =सुनी। जोगण = योगिनी। नग्र बिच = नगर में
भभूत =भस्म, राख। यो तन =यह शरीर। टेरि-टेरि = पुकार-पुकारकर
सुख भरि = सुख देने वाले। रूम-रूम =रोम-रोम। साता =शांन्ति।
फेरा-फेरी =आना-जाना, जनम-मरण।
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